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फ़रवरी उन दिनों की

फ़रवरी उन दिनों की  वो फ़रवरी का महीना....चारों तरफ ठंडा वातावरण.... मानो मन को भी शीतलता प्रदान कर रहा था... इतने सुनहरे मौसम में...प्रेम का दस्तक़ देना लाज़मी था... अठारह फ़रवरी की रात....दो अजनबी इन्टरनेट के माध्यम से करीब आए थे.....पहली बार किसी की पसंद बनने की ख़्वाहिश कुछ इस क़दर व्यक्तित्व पे हावी हुई की अपनी अस्मिता को ही दाव पे लगा दिया था...मगर प्रेम अब भी दूर था...शायद इज़हार के पीछे ही कहीं छुपा हुआ था... बारह महीनों में से फ़रवरी का महीना कुछ इस क़दर छोटा था....मानो उनके प्यार का उम्र।।। फ़ाल्गुन का महीना आरंभ हो रहा था.....दोनों पर एक दूसरे का रंग साफ़ तौर से महसूस किया जा सकता था।। उनका दरवाज़े पे अचानक से दस्तक़ देना...मानो दिल में दस्तक़ देने के सामान था.....होंठों पे मुस्कराहट... दिल में चाहत...आंखों में शर्म और वो छुपती छुपाती नज़र.. ये सब फ़ाल्गुन के महीने का असर था या उनकी चाहत का...इस बात का अंदाज़ा लगाना सरल था... खैर मैंने उस पल में एक मूक प्राणी का जीवन व्यतीत किया था...उस दिन ये महसूस हुआ की किस प्रकार एक मूक प्राणी अपने अंदर अनश्वर प्रेम को समेटे हुए ज
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शहर हमारा बेरोज़गार है साहब ।

शहर हमारा बेरोज़गार है साहब ।।     पहली बार अपने शहर में अकेला निकाला था कही घूमने,उम्र ज्यादा नही वही 13-14 साल रही होगी। पहली बार थोड़ा आज़ादी और साथ ही डर भी महसूस हुआ जो मम्मी पापा के साथ होने पर नही हुआ करता था , पर अच्छा लगा कई जगहों पर घूमा , और फिर दोपहर को घर वापस आने लगा कि सड़क पार करते समय एक आदमी ने मेरा हाथ पक्कड़ लिया, "उसने कहा इतनी क्या जल्दी है रेड लाइट हो जाने दो, फिर जाना"(उसे देख कर लगता था जैसे जिंदगी में उसने सब्र करना अच्छे से सीखा है)थोड़ी देर के लिए मैं घबरा गया(लड़का हुआ तो क्या हुआ) लेकिन फ़िर उसने रेड लाइट होते ही मुझे दूसरी तरफ छोड़ कर आगे चल दिया ,रात को मैं उस आदमी के बार में सोचता हुआ सो गया । अगले दिन सुबह रोज कि तरह घर के पास वाले पार्क में खेलने जाया करता था ,पार्क के गेट को तो लोगों ने कूड़ाघर समझ रखा था, हर कोई वही कूड़ा फेंकता था , पर मैंने देखा की आज कोई वहाँ एक छोटी सी जग़ह में सफाई कर रहा था मैं थोड़ा जल्दी में था तो ध्यान नही दिया और पार्क के अंदर चला गया । खेल खेल कर थक जाने के बाद घर वापस आने लगा तो देखा पार्क के गेट के पास एक मो

क्या आप ,हज़रत निजामुद्दीन औलिया की जूती की कहानी जानते है।

हज़रत निजामुद्दीन की जूती   Hello , दोस्तों । इस ब्लॉग के जरिये से में एक बेहद रोचक कहानी बताने जा रहा हूँ ।कहानी गुरु और शिष्य की है कुछ वैसी जैसीे महाभारत में गुरु द्रोण और शिष्य एकलव्य की थी ।      ये कहानी है , एक मशहूर सूफी संत (चौथे चिस्ती संत) जिन्हें खलीफा का दर्जा प्राप्त हो चूका था वो थे " हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया"(1236-1325) और उनके प्रिय शिष्य "अमीर खुसरो" की (1253-1325)जिनका सम्बन्ध राजघराने के साथ हुआ करता था और 8 राजों को अपनी सेवाएं पहले दे चुके थे । पर किसी वजह से अपनी नौकरी त्याग दी और वैराग और संतों की तरह जिंदगी जीने की सोची , और अपने परिवार और खूब सारे सामान(धन) और ऊँटो के साथ हज़रत निजामुद्दीन के आश्रम के लिए निकल पड़े ।        तो कहानी कुछ इस तरह हुई की हज़रत निजामुद्दीन लोगों को वैराग और सहनशीलता की शिक्षा दिया करते थे अपने आश्रम (कुटियां) में ,तो एक आदमी अपनी एक परेशानी ले कर हज़रत साहब के पास आया और उसने बोला की मेरी बेटी की शादी करवानी है और वह बहुत गरीब है और पैसों की सख्त जरूर है ,नही तो मेरी बेटी की शादी नही हो पाएगी। 

MASUM MANSOON

तुम न कभी कभी जो आते हो सच्ची बहुत रूलाते हो कलियों जो नयी खिलाते हो फिर साल भर छुप जाते हो । कोई गर्मी से दो चार है किसको तुम्हारा इंतजार है  तुम से ही तो बागों में बहार है दिल यू ही कई बेक़रार है । देखों कई दिलों का सवाल है । हाल थोड़ा बदहाल है वैसे मौका बेमिसाल है सब बेहतरीन ये अमल है । 'मासूम' लगते हो जब झूम के आते हो खोखले सरहदों को चूम के आते हो दिलों को दूरियों को तोड़ कर जाते हो ये छोटी सी दुनिया को जोड़ कर जाते हो । कोई खिलता है,तो कोई मचलता है आज कल हर कोई हसँ के मिलता है  और जिंदगी में कितने रंग थे ये तुम्ही से तो पता चलता है । मेरे शहर की सड़के तुम्हारे ,प्यार से बदनाम है रो कर पी रही है ,कीचड़ का जामा है  भीगी भीगी जो ये शाम है अब तो जिंदगी में बस यही आराम  है ।  :आप को हमारा ब्लॉग  कैसा लगा हमें ज़रूर बताए ,मिलते है अगले ब्लॉग के साथ नमस्कार ।।   :We will glad with your valuable Suggestions and reviews, thank you ! -Az👤 【Avoice63】°©

EK WO BHI KOI

                           एक मौसम वो भी था, जो              गरजता भी उसी के लिया था,              और बरसता भी उसी के लिए ।।              एक शायरी ऐसी भी थी, जो               दिल से आती थी उनके लिए               यादों में रहती थी उनके लिए ।। एक लमहा वो भी था ,जो साथ उनके गुजरता था और खुशियों- सा ठहरता ।। एक बात वो भी थी, जिसकी हर बात में आपका एहसास था जिसमे छुपा-सा कोई सांज था ।।                     एक याद भी ऐसी थी, जो                      बनी थी आपके आगाज़ से                 और खत्म होगी आपके जाने पर।।                   एक दोस्ती वो भी थी, जिसने                       सिखाया जीने तरीका                    कैसे जिए मारने के बाद भी।।  एक प्यार वो भी था,जो जो दिल ही दिल में रहता था बस कहने से डरता था ।। एक कहानी वो भी थी, जो शुरू उसी से होती थी  और खत्म भी उसी पर होगी ।।  :आप को हमारा ब्लॉग  कैसा लगा हमें ज़रूर बताए ,मिलते है अगले ब्लॉग के साथ नमस्कार ।।   :We will glad with your valuable Suggestions and reviews, thank you !

YEH WAQT BEET JAYEGA !

ये वक़्त बीत जाएगा तनहा छोड़ जाएगा बेवज़ह सताएगा न कोई फिर समझाएगा मुक़ाम वही फिर आएगा जब हर कोई रुलाएगा ।। ये वक़्त बीत जाएगा सूना-सा जहाँ हो जाएगा पतझड़ छा जाएगा दिल यू ही बेहाल जाएगा मुक़ाम वही फिर आएगा जब रिश्ता बदल जाएगा ।। ये वक़्त बीत जाएगा न लौट कर ये आएगा साथ अपना छूट जाएगा क़दम आगे को बढ़ जाएगा मुक़ाम वही फिर आएगा जब तनहा दिल हो जाएगा ।। ये वक़्त बीत जाएगा सफ़र नया कोई आएगा नया रास्ता मिल जाएगा शायद हमसफ़र बदल जाएगा मुक़ाम वही फिर आएगा जब दिल फिर संभल जाएगा ।। ये वक़्त बीत जाएगा ।  :आप को हमारा ब्लॉग  कैसा लगा हमें ज़रूर बताए ,मिलते है अगले ब्लॉग के साथ नमस्कार ।।   :We will glad with your valuable Suggestions and reviews, thank you ! -Az👤 【Avoice63】°©

DELHI DARSHAN

Hello , दोस्तों     लोकतंत्र की जीत तभी होती है जब चुनाव होते है चुनावी प्रक्रिया लोकतंत्र की सांसे जैसी है ।और जनता की भागीदारी बस यही एक महत्वपूर्ण मौका होता है    इसी दिशा में रविवार 23 अप्रैल 2017 को दिल्ली में नगर निगम के चुनाव होने जा रहे है और 272 सीटों पर अलग अलग पार्टियों के उम्मीदवॉर अपना दावा पेश करेंगे ।        इस ब्लॉग को लिखने का एक ही मकसद है ये देखना की आप वोट सोच समझ कर दे न कि झंडों और रैलियों को देख कर जो आपकी गलियों में आज कल टहल रहे है । "वोट देने का आधार उस राजनैतिक व्यक्ति पर होना चाहिय न कि उसकी पार्टी पर" , और वो क्या वादे है जो उन्होंने किये है ये जाना लेना भी बहुत जरूरी हो जाता है साथ ही MCD की संरचना "structure" , उम्मीदवारी "candidature" , और पार्टियों के घोषण पत्र " manifesto " पर भी एक नज़र देख़ लेना चाहिए , तो शुरू करते है ।                                                  【 संरचना - structure 】       दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) एक नगर निगम, एक स्वायत्त (autonomous)निकाय है जिसमे 272 सीटे है (north